Цитаты на хинди с переводом

Обновлено: 21.12.2024

1. दूसरीं का ऐब बड़ी जल्दी दीखता है ।
(дуусриин каа айб барии джалдии диикхтаа хай) (досл.пер. Порок других видится быстро)
В чужом глазу соломинку видим, в своём бревна не замечаем.

2. असल असल है नकल नकल है ।
(асал асал хей накал накал хей) (досл.пер. подлинное есть подлинное копия есть копия)
Подлинное всегда отличишь от фальшивки.

3. अरमान भरा घोंघा ।
(арамаан бхараа гхонгхаа) (досл.пер. желанием наполненная улитка)
Много желания, да мало возможности.

4. मरता क्या न करता । (мартаа кйаа на картаа) (досл.пер. что не делает умирающий)
Умирающий хватается за соломинку.

5. दुश्मन सोये न सोने दे ।
(душман сойе на сонэ дэ) (досл. пер. Враг спит не засыпая)
Враг покоя не даёт, даже когда спит.

6. नाम बड़े दर्शन थोड़े ।
(наам баре даршан тхоре)
Громкие названия, а посмотреть не на что.

9. धोबी गीत को धोबी जाने ।
(дхобии гиит ко дхобии джаане) (досл. пер. На восхваление прачки идёт прачка)
Рыбак рыбака видит издалека.

13. नादान दोस्त से दाना दुश्मन अच्छा है ।
(наадаан дост се даанаа душман аччхаа хай)
Услужливый дурак, опаснее врага.

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कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं
गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम् |
मनश्चेन्न लग्नं गुगोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् || २ ||

षडङ्गादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या
कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति |
मनश्चेन्न लग्नं गुगोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् || ३ ||

विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः
सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः |
मनश्चेन्न लग्नं गुगोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् || ४ ||

क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः
सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम् |
मनश्चेन्न लग्नं गुगोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् || ५ ||

यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापा
ज्जगद्वस्तु सर्वं करे यत्प्रसादात् |
मनश्चेन्न लग्नं गुगोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् || ६ ||

न भोगे न योगे न वा वाजिराजौ
न कान्तामुखे नैव वित्तेषु चित्तम् |
मनश्चेन्न लग्नं गुगोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् || ७ ||

अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये
न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये |
मनश्चेन्न लग्नं गुगोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम् || ८ ||

गुरोरष्टकं यः पठेत्पुण्यदेही
यतिर्भूपतिर्ब्रह्मचारी च गेही |
लभेद्वाच्छितार्थं पदं ब्रह्मसंज्ञं
गुरोरुक्तवाक्ये मनो यस्य लग्नम् || ९ ||

Шива-шадакшара-стотра


।। शिव षडक्षर स्तोत्रम् ।।

ॐकारं बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ।। १ ।।

नमन्ति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणाः ।
नरा नमन्ति देवेशं नकाराय नमो नमः ।। २ ।।

महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम् ।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः ।। ३ ।।

शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम् ।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः ।। ४ ।।

वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कण्ठभूषणम् ।
वामे शक्तिधरं वेदं वकाराय नमो नमः ।। ५ ।।

यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः ।
यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो नमः ।। ६ ।।

षडक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिव सन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ।। ७ ।।

Кто этот гимн шести слогам
Читает, преданный богам
Нектар блаженства изопьёт
В том мире, Шива где живёт.

Гимн 108 имён Шивы (шива-аштоттара-шатанама-стотра)

।। श्री शिवाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।।

शिवो महेश्वरश्शंभुः पिनाकी शशिशेखरः ।
वामदेवो विरूपाक्षः कपर्दी नीललोहितः ॥ १ ॥

Дарящий счастье царь, благой;
Кто лучник, убранный луной;
Прекрасен, необычноок,
власья в клок. || 1 ||

शंकरश्शूलपाणिश्च खट्वांगी विष्णुवल्लभः ।
शिपिविष्टोऽम्बिकानाथः श्रीकंठो भक्तवत्सलः ॥ २ ॥

Владелец жезла и копья;
Богини муж, исток бытья,
Прекрасношеий, чистый свет,
Услады преданных предмет. || 2 ||

भवश्शर्वस्त्रिलोकेशश्शितिकंठश्शिवप्रियः ।
उग्रः कपाली कामारी अंधकासुरसूदनः ॥ ३ ॥

Стрелой разящий; капалин;
Бытье; трехмирья властелин.
Желаний враг, Андхаки мор;
Сам ужас, любый дщери гор. || 3 ||

गंगाधरो ललाटाक्षः कालकालः कृपानिधिः ।
भीमः परशुहस्तश्च मृगपाणिर्जटाधरः ॥ ४ ॥

Держащий Гангу, смерти мор,
Во лбу чьем глаз, в руке топор.
Огромен, милости колосс.
Лань держит, спутанноволос. || 4 ||

कैलासवासी कवची कठोरस्त्रिपुरांतकः ।
वृषांको वृषभारूढो भस्मोद्धूलितविग्रहः ॥ ५ ॥

Живущий на горе святой,
Муж в пепле, на быке, густой.
Три града ввергнувший в конец;
В броню одетый и венец. || 5 ||

सामप्रियस्स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वरः ।
सर्वज्ञः परमात्मा च सोमसूर्याग्निलोचनः ॥ ६ ॥

हविर्यज्ञमयस्सोमः पंचवक्त्रस्सदाशिवः ।
विश्वेश्वरो वीरभद्रो गणनाथः प्रजापतिः ॥ ७ ॥

Огонь, что с Умою един,
Приемлет жертвы, господин.
Кто пятилик, всегда благой.
Царь духам; предок и герой. || 7 ||

हिरण्यरेतः दुर्धर्षः गिरीशो गिरिशोनघः ।
भुजङ्गभूषणो भर्गो गिरिधन्वा गिरिप्रियः ॥ ८ ॥

Златое семя у Кого,
Непросто оскорбить Его,
Змеей украшен, славен; гор
Владыка, житель и убор. || 8 ||

कृत्तिवासः पुरातनर्भगवान् प्रमथाधिपः ।
मृत्युंजयस्सूक्ष्मतनुर्जगद्व्यापी जगद्गुरुः ॥ ९ ॥

Бог древний, смерть что победил,
Собою всё заполонил.
Миров учитель, духов царь;
Кто тоньше, чем любая тварь. || 9 ||

व्योमकेशो महासेनजनकश्चारुविक्रमः ।
रुद्रो भूतपतिः स्थाणुरहिर्भुध्नो दिगंबरः ॥ १० ॥

Небесновласый, милый путь;
Отец воителя и суть.
Владыка всех, чей рёв суров.
Одетый в небо, ось миров.|| 10 ||

अष्टमूर्तिरनेकात्मा सात्त्विकश्शुद्धविग्रहः ।
शाश्वतः खंडपरशुरजः पाशविमोचकः ॥ ११ ॥

Восьмиобразен, многочтим,
Реален, чист, неоскверним.
Рубящий узы, как топор,
Непобеждённый до сих пор. || 11 ||

मृडः पशुपतिर्देवो महादेवोऽव्ययो हरिः ।
भगनेत्रभिदव्यक्तो दक्षाध्वरहरो हरः ॥ १२ ॥

Добрейший пастырь душам всем,
Неизменяемый совсем.
Великий бог, в оленя цвет,
Обряд что Дакши свёл на нет. || 12 ||

पूषदंतभिदव्यग्रो सहस्राक्षस्सहस्रपात् ।
अपवर्गप्रदोऽनंतस्तारकः परमेश्वरः ॥ १३ ॥

Гимн великому победителю смерти (махамритйунджайа-стотра)


रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १ ॥

नीलकन्ठं कालमूर्त्तिं कालज्ञं कालनाशनम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ २ ॥

नीलकण्ठं विरूपाक्शं निर्मलं निलयप्रदम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ३ ॥

वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ४ ॥

देवदेवं जगन्नाथं देवेशं वृषभध्वजम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ५ ॥

त्र्यक्शं चतुर्भुजं शान्तं जटामकुटधारिणम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ६ ॥

भस्मोद्धूलितसर्वाङ्गं नागाभरणभूषितम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ७ ॥


अनन्तमव्ययं शान्तं अक्शमालाधरं हरम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ८ ॥

आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ९ ॥

अर्द्धनारीश्वरं देवं पार्वतीप्राणनायकम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १० ॥

प्रलयस्थितिकर्त्तारमादिकर्त्तारमीश्वरम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ ११॥

व्योमकेशं विरूपाक्शं चन्द्रार्द्धकृतशेखरम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १२ ॥

गङ्गाधरं शशिधरं शङ्करं शूलपाणिनम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १३ ॥

अनाथः परमानन्तं कैवल्यपदगामिनि ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १४ ॥

स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारणम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १५ ॥

कल्पायुर्द्देहि मे पुण्यं यावदायुररोगताम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १६ ॥

शिवेशानां महादेवं वामदेवं सदाशिवम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १७ ॥

उत्पत्तिस्थितिसंहारकर्तारमीश्वरं गुरुम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति ॥ १८ ॥

Учитель миру кто всему,
Явивший циклы все собой
Что может сделать смерть тому,
Почтил кто Бога со змеёй?

Гимн неистового танца Шивы (шива-тандава-стотра)


जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।
डमड्डमड्ड्मड्ड्मन्निनादवड्ड्मर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु न: शिव:शिवम् ॥ १ ॥


धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं मम ॥ २ ॥

Низринут вод с волос каскад; священной Ганги водопад;
Пред юной убранным луной благоговеет разум мой.
Издав огонь, не знающий преград,
Исторг Он изо лба, шумя, к Нему любовь стремит меня. || 2 ||


कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३ ॥

Вершин держащий дочь царя, и, сладострастием горя,
Любовной занятый игрой в восторг ввергает разум мой.
Чей направления наряд, и состраданья полный взгляд
Конец всем тяготам кладёт; в ком радость ум ешё найдёт? || 3 ||


मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४ ॥

Волосья в клок; лианой змей, красой сияющий камней.
Цветами, киноварью Он омыт, любовно умащён.
Пьянящий, сладостный поток, спокоен, в шкуре, свет, исток.
Мой ум в восторге изумлён. Да будет Сущий восхвалён! || 4 ||


भुजंगराजमा्लया निबद्धजाटजूटक: श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखर: ॥ ५ ॥

Тысячеоким Он почтён и в змее Шеше воплощён.
Гирляндой змей на телесах, и птицы сродник в волосах.
С небесных жителей корон пыльцой усыпан, мира трон,
Склонённых вечно перед Ним, кто первый и неповторим. || 5 ||

नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयुखलेखया विराजमान शेखरं महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु न: ॥ ६ ॥

Пятью был стрелами снабжён желаний бог, но был сожжён
Со лба стремительным огнём Того, богами кто почтён.
Нам радость Тот да ниспошлёт, в чьих волосах луна живёт;
Великий первый капали'н, сияньем блещущий своим. || 6 ||

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपंचसायके ।
धरधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक त्रिलोचने रतिर्मम ॥ ७ ॥

Огня со лба поток меча, звуча,
Он пятистрелого спалил, Свой лютый норов проявил.
На пышных гру'дях дщери гор Он дивный, сказочный узор
Изобразил, как на стене. В Трехоком лишь услада мне. || 7 ||

नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहूनिशीथिनीतम: प्रबन्धबद्धकन्धर: ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुर: कलानिधानबन्धुर: श्रियं जगद्धुरन्धर: ॥ ८ ॥

Несущий бремя всех миров, темней, чем облачный покров,
Объявший новолунья ночь, кого никак не превозмочь,
Подобен туче молодой, реки святой омыт водой.
Всезащищающий герой да осчастливит разум мой. || 8 ||

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभावलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ ९ ॥

Как лотос чист, прославлен, свет; шеи цвет
Имеет Тот, достоин кто хвалы и славы, как никто.
Рожденье, страсть и ум отсёк, обряд и мрак и смерть отсёк,
Разрушен град великий Им, и я склоняюсь перед Ним. || 9 ||

अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ १० ॥

Подобен тёмным Он цветам, несёт всем радость существам,
Нектара сладостный поток, главнейший, правил всех исток.
Желаний бога погубил, слона и мрак и смерть убил.
Конец бытью кладётся Им, и я склоняюсь перед Ним. || 10 ||

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदंगतुन्गमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्ड्ताण्डव: शिव: ॥ ११ ॥

Изгибы тела; как стрела, ввысь рвется пламень из чела,
Огня кружится океан, танцует Шива; барабан
звучит, и сердце бешено стучит;
Безумный, ярый бытия небесный танец славлю я. || 11 ||

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयो: सुहृद्विपक्षपक्षयो: ।
तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो: समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ १२ ॥

Тому, во чьих святых очах во многих разниц нет вещах,
Благожелательный чей глаз взирает равно на алмаз,
Траву и лотос; на царей, гирлянды, змей, врагов, друзей;
Когда ж Тому, кто всеблагой, служить я буду всем собой? || 12 ||

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मति: सदा शिर:स्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नक: शिवेति मन्त्रामुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३ ॥

Когда же в чаще я густой, омытой Гангою святой,
В пещере только находясь, от дум дурных освободясь,
Ладони трепетно сложив, ко лбу со знаком приложив;
И мантру Шивы повторя; когда счастливым стану я? || 13 ||

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुध्दिमेति सन्त्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम् ॥ १४ ॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भु: ॥ १५ ॥

Кто поклоненье совершив и Самосущего почтив,
В вечор сей гимн десятка ртов читает, станет тот здоров,
Неколебимым и царём; удача будет вся при нём.
Прекрасный лик, коней, слонов ему дарует Бог богов. || 15 ||

Шестистишие совершенного блаженства (нирванашатакам)


मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योमभूमीर्न तेजो न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ।। १ ।।

Не разум, не воздух, не вкус и не зренье,
Не слух и не эго, и не ощущенье,
Не небо, огонь, обонянье,
Сознание, Шива блаженнейший я. || 1 ||


न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश: ।
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ।। २ ।।

Не руки, не ноги, не жизни дыханья,
Не внутренность я и ни речи звучанья;
Не пять оболочек, не сила есть
Сознание, Шива блаженнейший я. || 2 ||


न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव: ।
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ।। ३ ।।

Во мне нет враждебности, страстных желаний,
И нет заблуждений, богатства стяжаний;
Услад и законов, свободы вне
Сознание, Шива блаженнейший я. || 3 ||


न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा: ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ।। ४ ।।


न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म ।
न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ।। ५ ।।


Я не был рождён, и удачи не знаю,
Не перерождаюсь и не умираю,
Без друга, учителя, родичей
Сознание, Шива блаженнейший я. || 5 ||


अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ।। ६ ।।

Я формы лишён и везде пребываю.
Я неизмерим и сообществ не знаю.
Все органы чувств чуют только
Сознание, Шива блаженнейший я. || 6 ||

Восьмистишие Сущей Богине (бхаванйаштакам)

न तातो न माता न बन्धुर्न भ्रता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ १ ॥

Отца нет и матери, братьев родимых;
Ни сына, ни предков, ни слуг, ни любимых;
Жены нет и знаний, и нет увлеченья;
К тебе лишь, о Сущая, все устремленья. 1

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ २ ॥

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्‌।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ३ ॥

Не знаю я йоги, богов почитаний,
Ни мантры, ни гимнов, ни тайн заклинаний;
Йогических жестов и благотворенья;
К тебе лишь, о Сущая, все устремленья. 3

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्‌।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ ४ ॥

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ ५ ॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्‌।
न जानामि चान्यत्‌ सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ ६ ॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ ७ ॥

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महाक्शीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी ॥ ८ ॥

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1. एक हाथ से ताली नहीं बजती ।
(ек хаатх сэ таалии нахиин баджтии)(досл.пер.Одной ладонью не хлопнешь)
Никто не слышит хлопка одной ладони.

2. नया जोगी, जांघ तक जटा ।
(найаа джогии, джаангх так джатаа)(досл.пер.Новый отшельник-йог, спутанные волосы до бедра)
Неофит всегда фанатичен.

4. ग़रज़र्मद के अक्ल नहीं होती ।
(гарзармад ке акл нахиин хотии)
Желающий не имеет разума.

6. ग्यारह देवता और उतावली की पूजा ।
(кйаарах деватаа аур утаавалии кии пууджаа)
Одиннадцати божествам поклоняются торопливо.

7. अनुभव जैसा दूसरा गुरू नहीं होता ।
(анубхав джайсаа дуусраа гуруу нахиин хотаа)
Не бывает другого учителя, кроме опыта.

8. अंधेरे में किया लेकिन प्रकाश में आया ।
(андхере мен кийаа лекин пракааш мен аайаа)(досл.пер.Сделанное во мраке, появилось в свете)
Всё тайное становится явным.

9. जैसे देवता तैसी पूजा ।
(джайсе девтаа тайсии пууджаа)
Какое божество, такое и богослужение.

10. लाडला पूत मंदिर में हगे, गाँड़ पोंछने को (िशव की) िपन्डी माँगे ।
(лаадлаа пуут мандир мен хаге, гаанр пончхне ко (шив кии) пиндии маанге)
Избалованный сын, испражнившись в храме, потребует у Шивы тряпочку, жопу подтереть.

11. जहाँ भाव वहाँ देव ।
(джахаан бхаав вахаан дев)
Где чувство, там и Бог.

13. धर्म छोड़ धन कोई खाय (дхарм чхор дхан коии кхаай)
(досл.пер. Оставив дхарму, богатством не насытишься)
На добытое грехом не построишь прочный дом.

14. पानी में बसकर मगर से लड़ना । (паании мен баскар магар се ларнаа)
(досл.пер. Поселившись в воде, воевать с крокодилом)
В чужой монастырь со своим уставом не ходят.

15. फ़तह और शिकस्त खुदा के हाथ ।
(фатах аур шикаст кхудаа ке хаатх)
Победа и поражение в руках всевышнего.

16. सेवा में मेवा ।
(севаа мен меваа) (досл. пер. В служении плоды)
Служение приносит результаты.

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